गुरुवार, 21 मार्च 2013

घर री राड़


घर री राड़
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मा सिखाई सेवा
मायतां री
मा रा मायत 
मा रा सासू-सुसरा
म्हारा दादो-दादी
मा घणीं ई करती चाकरी
पण डरती
नीं होई गळती सूं
पछै तो होयां ई सरती ।

मा री
गळती माथै 
होंवतो घर में गोधम
सांकडै़ आंवता पिता जी
बोलतां ही हो जांवता मून
आ सुण
ल्यो ले ल्यो
इण रो तो वकील भी है 
आप रै बाप माथै गयो है
दादी हांसती
मा भी हांस जांवती
बस इयां मिट जांवती
घर री राड़ ।

म्हनै लागतो
बडेरा कदै ई
राड़ नीं करै
बाड़ करै घर रै ।

म्हैं तुळछां हूं थारै आंगणै री


म्हैं तुळछां हूं थारै आंगणै री
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आज मा रो फ़ोन आयो
मा बतायो-
लारली दीयाळी 
परणीजगी बा तुळछां
जकी थूं लगाई
आपणैं घर रै आंगणैं
परणीज्यां पछै
तीन मईना हरी रैई
कोई नवी काढी ई नीं डाली
नीं लाग्या नवा पानका
जूनी डाळ्यां माथै
जरूर आया मोर
बा तो बळगी जा पछै 
थारा सुणा
काईं हाल है !

म्हारा तो
बुसका ई फ़ाट्या
सबद दोरा ई डाट्या
"मा म्हैं तुळछां हूं थारै आंगणै री"
इत्तो ई बोलीज्यो
अर मा फ़ोन काट दियो !

बा मिठास कठै


बा मिठास कठै
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घर तो घर हो
म्हारो घर
घर में ई रैई
चौबीस बसंत
जठै कद हो
सुखां रो अंत ।

जद कदै ई 
निकळती घर सूं
मा पापा जी
भाई अर बाई री
कई जोडी़ आंख
घर सूं ई
लारै चालती
जकी रुखाळती
म्हारो मारग 
कित्तो मिठास हो
बां आंख्यां में ।

घर तो
आज भी है
घर री मालकण भी
म्हैं खुद हूं
पण कठै बा बात
दिखै ई कोनीं अठै
जकी लारै छूटगी
बा मिठास कठै
अठै री आंख्यां में ।