गुरुवार, 8 जुलाई 2010

अंकिता पुरोहित ‘कागदांश’ की हिन्दी कविता

अंकिता पुरोहित ‘कागदांश’ की हिन्दी कविता

मजदूर


जो कांटो से
खेले समूल
वही
होता है फूल!

जो देता है दस्तक
दरवाजों पर आकर
वही तो होता है
दिपता भास्कर!

जो फोड़ दे
शत्रुता के गागर
वही तो होता है
लहराता सागर!

जो सुरज की तपिश में
जलाता है बदन
कमाता है स्वपन
गरीबी में भी
रखता है गम दूर
वही तो होता है मजदूर!

फूल को नमन मेरा
मेहनत के दस्तूर को नमन
खटते मजदूर को नमन!