शुक्रवार, 11 जून 2010

अंकिता पुरोहित कागदांश की हिन्दी कविता

अंकिता पुरोहित "कागदांश" की हिन्दी कविता

पिताजी

देखते है सब
मॉं की ममता को,
ममत्व को,
नहीं देख पाता कोई
पिता को
उनके खुशी भरे मन को;
बनती है जब बेटी कुछ
सब सराहते हैं
मॉं के संस्कार ।

नहीं देख पाता कोई
पिता को
उनके मन में
छिपे हुए नाज को,
उनके आत्म विश्वास को।

होती है जब विदा बेटी
देखते है सब
मॉं के आंसुओ को !

नहीं देख पाता कोई
पिता को,
उनके मन में छिपे
दर्द को

विदा करते वक्त
उनके मन में उठते-
अजीब से उफान को,
नहीं देख पाता कोई

अगर कोई देख पाता है
तो वह है बेटी
सिर्फ एक बेटी !