बा मिठास कठै
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घर तो घर हो
म्हारो घर
घर में ई रैई
चौबीस बसंत
जठै कद हो
सुखां रो अंत ।
जद कदै ई
निकळती घर सूं
मा पापा जी
भाई अर बाई री
कई जोडी़ आंख
घर सूं ई
लारै चालती
जकी रुखाळती
म्हारो मारग
कित्तो मिठास हो
बां आंख्यां में ।
घर तो
आज भी है
घर री मालकण भी
म्हैं खुद हूं
पण कठै बा बात
दिखै ई कोनीं अठै
जकी लारै छूटगी
बा मिठास कठै
अठै री आंख्यां में ।
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