गुरुवार, 21 मार्च 2013

बा मिठास कठै


बा मिठास कठै
==========
घर तो घर हो
म्हारो घर
घर में ई रैई
चौबीस बसंत
जठै कद हो
सुखां रो अंत ।

जद कदै ई 
निकळती घर सूं
मा पापा जी
भाई अर बाई री
कई जोडी़ आंख
घर सूं ई
लारै चालती
जकी रुखाळती
म्हारो मारग 
कित्तो मिठास हो
बां आंख्यां में ।

घर तो
आज भी है
घर री मालकण भी
म्हैं खुद हूं
पण कठै बा बात
दिखै ई कोनीं अठै
जकी लारै छूटगी
बा मिठास कठै
अठै री आंख्यां में ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें