अंकिता पुरोहित "कागदांश" की हिन्दी कविता
मैं ही थकती हूं
वे 
तोड़ते है पत्थर
हर रोज भरपूर मेहनत से
बहाते है पसीना
होम कर निज बदन
माना निकाल ही लेंगे
चमचमाता हीरा ।
अभी लगन है
श्रम के प्रति
कर रहे अपना काम
विश्वास से,
ईमान से,
रोकते नहीं उल्टे
आंधी और तुफान
जैसे कि पा ही लेंगे
अपना मुकाम।
मैं देखती हूं
एक-टक
सुनती हूं
टक-टक
वे नहीं थकते
मैं ही थकती हूं
देखते-देखते।
उनकी आंखों में
सपना हैं।
सपनों में ही हो सकता है हीरा
मेरी आंखों मे तो
वे ही है हीरा।

तोड़ते है पत्थर
हर रोज भरपूर मेहनत से
बहाते है पसीना
होम कर निज बदन
माना निकाल ही लेंगे
चमचमाता हीरा ।
अभी लगन है
श्रम के प्रति
कर रहे अपना काम
विश्वास से,
ईमान से,
रोकते नहीं उल्टे
आंधी और तुफान
जैसे कि पा ही लेंगे
अपना मुकाम।
मैं देखती हूं
एक-टक
सुनती हूं
टक-टक
वे नहीं थकते
मैं ही थकती हूं
देखते-देखते।
उनकी आंखों में
सपना हैं।
सपनों में ही हो सकता है हीरा
मेरी आंखों मे तो
वे ही है हीरा।
बहुत ही सुंदर .... एक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया ...
जवाब देंहटाएंकमाल की प्रस्तुति ....जितनी तारीफ़ करो मुझे तो कम ही लगेगी
जवाब देंहटाएंकागद का अंश -कगदांश....सही है ?
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता .... जारी रखें
सुन्दर ... जारी रखें ..
जवाब देंहटाएंAPANE BLOG SE WORD VERIFICATION HATA LE ..
जवाब देंहटाएंशब्द भाव, और शिल्प; .......अभिराम!
जवाब देंहटाएंसर्वहारा चिंतन और गहन अभिव्यक्ति; .......अभिराम!
कागद है अभिराम तभी, है जब कागदांश; .......अभिराम !!
रुके ना कलम ये कभी. लिए भाव व्यंजना
चलती रहे...अविराम ! अविराम ! अविराम !!
सुन्दरतम और सफलतम प्रयास.... माँ शारदा के हमेशा अनुकम्पा बनी रहे...बधाई. !!
bahut achi hai...... very good...... keep it up
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