बेटी
खेलती जब
घर के आंगन में
गूंज जाता था घर
पाजेब की झनकार से
मॉं खिलाती थी खाना
अपने हाथों से
दादी सुनाती थी कहानी
सुनहरी रातों में
पिताजी देते थे ज्ञान
अच्छे संस्कारों के
दादा सुनाते थे किस्से
अपने बीते जमाने के
बहन रखती ख्याल
देती थी साथ
ज्ञान की बातों में
भाई मारता फटकार
मगर दबी दबी सी
मुस्कान के साथ
परन्तु रखता पुरा ध्यान
मेरी हर बातों का
याद आते हैं
वे प्यार भरे दिन
क्यो कर दिया
विदा मुझे वहॉं से
क्यूं बनाया है
यह दस्तूर संसार ने
बचपन की यादें और ये रीति? ठीक कहा आपने।
जवाब देंहटाएंघर की रौनक जो थी अबतक घर बसाने को चली
जाते जाते उसके सर को चूमना अच्छा लगा
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
बहुत सुन्दर लिखा है आपने. भविष्य के लिए शुभ-कामनाएं
जवाब देंहटाएंसीधी, सच्ची और अच्छी सोच, शब्द और भाव
जवाब देंहटाएंस्वागत .............
जवाब देंहटाएंआरंभ
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
जवाब देंहटाएंकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
सीधी-सच्ची-सुन्दर कविता।
जवाब देंहटाएंduniya ka dastoor hai.. bahut hi pyari kavita likhi hai...badhaee.
जवाब देंहटाएंअब कहां वे दिन वे जज़्वात, वे संस्कार -----सुन्दर स्म्रिति-कविता.
जवाब देंहटाएंबाई अंकिता,
जवाब देंहटाएंकविता भोत सुणी है. बांच'र मन घणो राजी होयो. म्हानै ठा नी हो कै आप भी लिखो हो. आपरी सुन्दर रचना खातर मोकळी-मोकळी बधाई. बड़ा रो आशीर्वाद अर छोटां रो प्यार आपरै सागै है, आप नित नुइं ऊंचाई नै छुओ.
आ बाई, थे तो भोत सूणी कविता मांडी है.............
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