मजदूर
जो कांटो से
खेले समूल
वही
होता है फूल!
जो देता है दस्तक
दरवाजों पर आकर
वही तो होता है
दिपता भास्कर!
जो फोड़ दे
शत्रुता के गागर
वही तो होता है
लहराता सागर!
जो सुरज की तपिश में
जलाता है बदन
कमाता है स्वपन
गरीबी में भी
रखता है गम दूर
वही तो होता है मजदूर!
फूल को नमन मेरा
मेहनत के दस्तूर को नमन
खटते मजदूर को नमन!
खटते मजदूर को नमन! बहुत सुन्दर कविता.
जवाब देंहटाएंइस कविता के लिए धन्यवाद.
wah!
जवाब देंहटाएंkya khoob likha hai.
sari kavitayen bahoot achi hai.
Very Good Poem About Hard Workman
जवाब देंहटाएंbahut aachha kawita aap likhte hain.thanks
जवाब देंहटाएंDipesh jha
आपकी कविता मे जो जो शब्द रुप दर्द है वह आपकी अंदर की विचारों की गहराई को उजागर करता हैं । बहुत अच्छी कविता है और आगे भी करो ।
जवाब देंहटाएंजीवन भी तो एक फूल ही है
जवाब देंहटाएंबढिया
जीवन और फूल का रूपक भा गया
जवाब देंहटाएंजीवन और फूल का मिथक भा गया
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