अंकिता पुरोहित "कागदांश" की हिन्दी कविता
पिताजी
देखते है सब
मॉं की ममता को,
ममत्व को,
नहीं देख पाता कोई
पिता को
उनके खुशी भरे मन को;
बनती है जब बेटी कुछ
सब सराहते हैं
मॉं के संस्कार ।
नहीं देख पाता कोई
पिता को
उनके मन में
छिपे हुए नाज को,
उनके आत्म विश्वास को।
होती है जब विदा बेटी
देखते है सब
मॉं के आंसुओ को !
नहीं देख पाता कोई
पिता को,
उनके मन में छिपे
दर्द को
विदा करते वक्त
उनके मन में उठते-
अजीब से उफान को,
नहीं देख पाता कोई
अगर कोई देख पाता है
तो वह है बेटी
सिर्फ एक बेटी !
पिताजी
देखते है सब

मॉं की ममता को,
ममत्व को,
नहीं देख पाता कोई
पिता को
उनके खुशी भरे मन को;
बनती है जब बेटी कुछ
सब सराहते हैं
मॉं के संस्कार ।
नहीं देख पाता कोई
पिता को
उनके मन में
छिपे हुए नाज को,
उनके आत्म विश्वास को।
होती है जब विदा बेटी
देखते है सब
मॉं के आंसुओ को !
नहीं देख पाता कोई
पिता को,
उनके मन में छिपे
दर्द को
विदा करते वक्त
उनके मन में उठते-
अजीब से उफान को,
नहीं देख पाता कोई
अगर कोई देख पाता है
तो वह है बेटी
सिर्फ एक बेटी !